Tuesday, November 22, 2016

SIX YEARS OLD GIRL MARRY 50 YEARS OLD MAN IN ISLAM (URDU )


मुल्हिदीन कही से भी कोई भी तस्वीर उठा क्र बगैर कोई साबुत दिए इस पर अपनी खुद साख्ता कहानी जड़ क्र इस्लाम पर तनकीद करते रहते है . उपर की तस्वीर फोटो भी इसी दलील बाला का एक हिस्सा है जिस का मकसद बस उम अल मौमिनीन  हजरत आयेशा र.अ. की कम उमरी में शादी करना है. मेरा सवाल इस देसी लिब्रल्स लुंडे के अंग्रेजो से ये है के आप के पास वो कौनसा स्टैण्डर्ड है जिस से आप किसी की शादी को रोक सकते है ? अभी पचास साला शारुख खान या सलमान खान उनकी बेटी का रिश्ता मांग ले तो ये एक के साथ एक फ्री दे देंगे .अगर लड़की ना बालिग है तो उससे शादी तो यकीनन एक जुर्म होंगा . मगर एक अक्ल वाली बालिग खातून से शादी से रोकना नेहायत घटिया ज़हनियत है और हजरत आयेशा र.अ  के बारे में ये साबित है के वो गैर मामूली जसारत, ज़हानत और ब्लोगत को पहुच चुकी थी.
मुश्त्रिकिन और मुल्हिदीन ने हजरत आयेशा र.अ के निकाह के सिलसिले में जिस मफरुज़े की बुनियाद पर नारवा और बेजा तरीके पर लब को हरकत और पेन को जन्ब्श दी है, अगर अरब के उस वक्त के जुगराफियाई माहोल और आब व हवा  का तारीखी स्टडी करे तो उसका खोखला पं साबित होजाता है .
हर मुल्क व इलाके के माहोल के मुताबिक लोगो के रंग व रूप , जिस्मानी व जिन्सी बनावट व अतवार जिस तरह बा हम मुख्तलिफ होते है उसी तरह age ऑफ़ puberty (सन ब्लोग्त ) में भी काफी फर्क होता है . जिन मुल्को में मौसम सर्द होता है वाहा ब्लोग्त की उम्र ज्यादा होती है. और जहा मौसम गर्म होता है वहा ब्लोग्त जल्द  डेवेलोप हो जाती है . मसलन अरब एक गर्म मुल्क है. वहा की खुराक भी गर्म होती है जो के उमुमन खजूर और ऊँट के गोश्त पर मुबंई होती है. इस लिए उम अल मौमिनिन आयेशा र.अ का ९ साल की उम्र में बालिग होजाना अक्ल के खिलाफ नहीं .
हजरत आयेशा र.अ की निस्बत काबिल व सौक रिवायात से भी ये मालूम है के उनकी जिस्मानी कुवत बहुत बहतर थी और उन में कुवत नाशोनुमा जियादा थी. एक तो खुद अरब की गर्म आब व हवा में औरतो के गैर मामूली नाशो नुमा की सलाहियत है दुसरे आम तौर पर ये भी देखा गया है के जिस तरह मुमताज़ अश्खास के दिमागी और ज़हीनी कावा में तरक्की की गैर मामूली इस्तेदाद होती है . इसी तरह कद व कामत (physical) में भी बालिदगी की ख़ास सलाहियत होती है. इस लिए बहुत थोड़ी उम्र में वो कुवत हजरत आयेशा र.अ में पैदा होगई थी जो शोहर के पास जाने के लिए एक औरत में जरूरी होती है.
यही वजा हैकि हजरत आयेशा र.अ को खुद उनकी माँ ने बदून उसके के अन-हजरत स.अ की तरफ से रुखसती का तकाज़ा किया गया हो , खिदमत ए नबवी में भेजा था और दुनिया जानती है के कोई माँ अपनी बेटी की दुश्मन नहीं होती. बल्कि लड़की सब से जियादा अपनी माँ ही की लाडली और महबूब होती है. इस लिए ना मुमकिन और महाल है के उन्होंने अज्द्वाजी तालुकात कायम करने की सलाहियत व अहलियत से पहले उनकी रुखसती करदिया हो .
इस्लामी तारीख से मिसाले :
इस्लामी किताबो में अय्से बहुत वाकियात नकल किये गए है, जिन से साबित होता है के अरब के माशरे में ९ साल की उम्र में बच्चा जन्म देना आम बात और उस उम्र में निकाह  करना रिवाज था. इन लोगो के लिए कोई हैरत की बात नहीं थी .. कुछ वाकियात ....
१.अबू आसिम अल-नबील कहते है के मेरी वालिदा ११० हिजरी में पैदा हुई और मई १२२ हिजरी में पैदा हुआ .[ सीरत अयेलुल-न्बला जिल्द ७ ,१६२७ ] यानी १२ साल की उम्र में उनका बेटा पैदा हुआ तो ज़ाहिर है की वालिदा की शादी १० से ११ साल की उम्र ममे हुई होंगी .
२.अब्दुल्लाह बन उमरू अपने बाप उमरू बिन अआस र.अ से सिर्फ ११ साल छोटे थे. [ ताज्कृत-उल-हुफ्फाज़ जिल्द १,९३ ]
३.ह्शाम बिन अरवा ने फातिमा बिन्त मंजर से शादी की उसवक्त फातिमा की उम्र ९ साल थी .[ अल-ज़ुआफा लील-अकिली जिल्द ४ ,१५८३ , तारीख बगदाद १/२२२ ]
४.अब्दुल्लाह बिन सालेह कहते है उनकी पड़ोस में एक औरत ९ साल की उम्र में प्रेग्नेंट हुई और उस रिवायत में ये भी दर्ज है की एक आदमी ने उनको बताया के उसकी बेटी १० साल की उम्र में प्रेग्नंट हुई.[ कामिल ला-इब्न अदि जिलद ५ / १०१५
५.हजरत माविया र.अ ने अपनी बेटी की शादी ९ साल की उम्र में अब्दुल्लाह बिन आमिर से कराइ .[तारीख इब्न असाकिर जिल्द ७० ]
६.इमाम दार-कुतनी र.अ ने एक वाकिया नकल फ़रमाया है के अबाद बिन अबाद-उल-मह्ल्बी  फरमाते है में ने एक औरत को देखा के वो १८ साल की उम्र में नानी बन गयी ९ साल की उम्र में उसने बेटी को जन्म दिया और उसकी बेटी ने भी ९ साल की उम्र में बच्चा जन्म दिया .[ सुनन  दार कुतनी जिल्द ३ किताब अल-निकाह ३८३६ ]
माज़ी करीब और हाल की मिसाले :
इसी तरह के कई हवाले इस बात पर दलील है के ये कोई अनोखा मामला नहीं था , आज कल भी अखबारों में इस किस्म की खबरे छपती रहती है . रोजनामा dawn २९ मार्च १९६६ में खबर थी के ८ साल की बच्ची प्रेग्नंट हुई और ९ साल की उम्र में उसने बच्चा जाना . डॉक्टर जाकिर नायक ने एक दफा अपने एक इंटरव्यू में बताया था के “ हदीस आयेशा र.अ के बारे में मेरे जहन में भी काफी शक था . पेशे से एक डॉक्टर होने की वजा स मेरे पास एक मरीज़ आया जिस की उम्र ९ साल थी और उसे हैज़ menses आरहे थे . तो मुझे इस रिवायत की सचाई और हक्कानियत पर यकीन अगया .”
इस के इलावा रोजनाम जंग कराची में १६ अप्रैल १९८६ को खबर तस्वीर के सह छपी थी जिस में एक ९ साल की बची जिस का नाम अल्लिएंस था और जो ब्राज़ील की रहने वाली थी २० दिन की बची की माँ थी .
इसी तरह रोजनामा आगाज़ में १ अक्टोबर १९९७ को खबर छपी के ( मुल्तान के करीब एक गाँव में )  एक ८ साल की लड़की प्रेग्नंट होगई है और डोक्टोरो ने एलान किया की जचकी के वक़्त उसकी मौत भी होसकती है .फिर ९ डिसेम्बर १९९७ को उसी अखबार में दूसरी खबर छपि के “मुल्तान (आगाज़ न्यूज़ ) एक ८ साल लड़की ने एक बच्चा जन्म दिया और वो सहत मन्द नही है . जब अय्से मॉडरेट और मीडियम माहोल व आब व हवा वाले मुल्क में ८ साल की लडकी में ये इस्तेदाद पैदा हो सकती है तो अरब  के गर्म आब व हवा वाले मुल्क में ९ साल की लड़की में इस सलाहियत का पैदा होना कोई ताजुब की बात नही है.
इन्टरनेट पर भी इस उम्र की लडकियों के हां बच्चो की पैदाइश की बिसो खबरे मौजूद है, २ ,३ महीने पहले खबर पढ़ी जिस में यूरोप की एक लड़की का बताया गया था के वो १२ साल की उम्र में माँ बन गयी, और हजरत आयेशा र.अ  के निकाह पर ऐतराज़ करने वाले इन्ही मुल्हिदीन ने उसे वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया था.

जब आप गौर करे गे के नबी स.अ ने आयेशा र.अ के इलावा किसी और कुंवारी औरत से शादी नहीं की बल्कि उनके इलावा बाकी सब बीविय एसी थी जिन की पहले शादी होचुकी थी अब या तो मुत्लाका थी या बेवा , इस तरह वो तान जो कुछ लोग फैलाने की कोशिश करते है के नबी स.अ का शादी करने का मकसद सिर्फ औरतो की शहवत और उनसे नफाह उठाना था जाइल (बेकार) होजाता है.
कियुनकी जिस शक्स का ये मकसद हो तो वो अपनी सारी बिविया या अक्सर एसी इख्तेयार करता है जो इन्तेहाही खुबसुरत हो और उन में रगबत की सारी सिफात पाई जाये, और इसी तरह और हिस्सी और जाइल होने वाले मेयार भी.

कुफार और उनके पैरोकारो का उस तरह नबी रहमत स.अ में तान करना इस बात की गुमारी करता है के वो अल्लाह तआला की तरफ से नाजिल करदा दिन और शरियत में तान करने से बिलकुल आजिज़ आचुके है अब उन्हें कुछ नहीं मिला तो नबी स.अ की ज़ात में तान करना शरू करदिया और कोशिश करते है के खारजी उमोर में तान किया जाये, लेकिन अल्लाह तआला तो अपने नूर और दिन को मुकमिल करके रहेगा अगरचा काफ़िर बुरा मानते रहे .
अल्लाह तआला ही तौफिक बक्ष्ने वाला है.
बेंजामिन महर

ملحدین کہیں سے بھی کوئ بھی تصویر اٹھا کر بغیر کوئ ثبوت دیے اس پر اپنی خود ساختہ کہانی جڑ کر اسلام پر تنقید کرتے رہتے ہیں۔ زیر نظر تصویر بھی اسی دلیلِ بال لاں کا ایک حصہ ہے جس کا مقصد پس پردہ ام المومنین حضرات عائشہ رض کی کم عمری میں شادی کرنا ہے۔ میرا سوال ان دیسی لبرلز یعنی لنڈے کے انگریزوں سے یہ ہے کہ آپ کے پاس وہ کونسا سٹینڈرڈ ہے جس سے آپ کسی کی شادی کو روک سکتے ہیں؟ ابھی پچاس سالہ شاہ رخ خان یا سلمان خان ان کی بیٹی کا رشتہ مانگ لیں تو یہ ایک کے ساتھ ایک فری دے دیں گے۔ اگر لڑکی نابالغ ہے تو اس سے شادی تو یقیناً ایک جرم ہو گا۔ مگر ایک عاقل بالغ خاتون سے شادی سے روکنا نہایت گھٹیا زہنیت ہے اور حضرت عائشہ کے بارے میں یہ ثابت ہے کہ وہ غیر معمولی جسامت ،زہانت اور بلوغت کو پہنچ چکی تھیں۔ 
مستشرقین اور ملحدین نے حضرت عائشہ رضی الله عنہا کے نکاح کے سلسلہ میں جس مفروضہ کی بنیاد پر ناروا اور بیجاطریقہ پر لب کو حرکت اور قلم کوجنبش دی ہے’ اگر عرب کے اس وقت کے جغرافیائی ماحول اور آب و ہوا کا تاریخی مطالعہ کریں تو اس کا کھوکھلا پن ثابت ہوجاتا ہے۔
ہر ملک وعلاقے کے ماحول کے مطابق لوگوں کے رنگ وروپ ،جسمانی وجنسی بناوٹ اورعادت واطوار جس طرح باہم مختلف ہوتے ہیں اسی طرح سن بلوغت میں بھی کافی تفاوت و فرق ہوتا ہے ۔ جن ممالک میں موسم سرد ہوتا ہے وہاں بلوغت کی عمر زیادہ ہوتی ہے اور جہاں موسم گرم ہوتا ہے وہاں بلوغت جلد وقوع پذیر ہوجاتی ہے ۔ مثلاً عرب ایک گرم ملک ہے ۔وہاں کی خوراک بھی گرم ہوتی ہے جوکہ عموماً کھجور اور اونٹ کے گوشت پر مبنی ہوتی ہے۔ اس لئے ام المؤمنین عائشہ رضی اللہ عنہا کا 9سال کی عمر میں بالغ ہوجانا بعید از عقل نہیں ۔
حضرت عائشہ رضی الله عنہا کی نسبت قابل وثوق روایات سے بھی یہ معلوم ہے کہ ان کے جسمانی قوی بہت بہتر تھے اور ان میں قوت نشو و نما بہت زیادہ تھی۔ ایک تو خود عرب کی گرم آب و ہوا میں عورتوں کے غیرمعمولی نشوونماکی صلاحیت ہےدوسرے عام طورپر یہ بھی دیکھا گیا ہے کہ جس طرح ممتاز اشخاص کے دماغی اور ذہنی قویٰ میں ترقی کی غیرمعمولی استعداد ہوتی ہے، اسی طرح قدوقامت میں بھی بالیدگی کی خاص صلاحیت ہوتی ہے۔ اس لیے بہت تھوڑی عمر میں وہ قوت حضرت عائشہ رضی الله عنہا میں پیدا ہوگئی تھی جو شوہر کے پاس جانے کے لیے ایک عورت میں ضروری ہوتی ہے۔
یہی وجہ ہے کہ حضرت عائشہ رضی الله عنہا کو خود ان کی والدہ نے بدون اس کے کہ آنحضرت صلى الله علیه وسلم کی طرف سے رخصتی کا تقاضا کیاگیاہو، خدمتِ نبوی میں بھیجا تھا اور دنیا جانتی ہے کہ کوئی ماں اپنی بیٹی کی دشمن نہیں ہوتی؛ بلکہ لڑکی سب سے زیادہ اپنی ماں ہی کی عزیز اور محبوب ہوتی ہے۔ اس لیے ناممکن اور محال ہے کہ انھوں نے ازدواجی تعلقات قائم کرنے کی صلاحیت واہلیت سے پہلے ان کی رخصتی کردیا ہو ۔

اسلامی تاریخ سے مثالیں:
اسلامی کتابوں میں ایسے بہت واقعات نقل کیے گئے ہیں ، جن سے ثابت ہوتا ہے کہ عرب کے معاشرے میں نو (9) سال کی عمر میں بچہ جنم دینا عام بات اور اس عمر میں نکاح کرنارواج تھا۔ ان لوگوں کے لئے یہ کوئی حیرت کی بات نہیں تھی۔چند واقعات ،
(1)
ابوعاصم النبیل کہتے ہیں کہ میری والدہ ایک سو دس (110) ہجری میں پیدا ہوئیں اور میں ایک سو بائیس( 122) ہجری میں پیدا ہوا۔ (سیر اعلاالنبلاء جلد7رقم1627) یعنی بارہ سال کی عمر میں ان کا بیٹا پیدا ہوا تو ظاہر ہے کہ ان کی والدہ کی شادی دس سے گیارہ سال کی عمر میں ہوئی ہوگی۔
(2)
عبداللہ بن عمر و اپنے باپ عمرو بن عاص رضی اللہ عنہ سے صرف گیارہ سال چھوٹے تھے ۔
(
تذکرة الحفاظ جلد1ص93)
(3)
ہشام بن عروہ نے فاطمہ بنت منذر سے شادی کی اور بوقت زواج فاطمہ کی عمر نو سال تھی ۔ (الضعفاء للعقیلی جلد4رقم 1583، تاریخ بغداد 222/1)
(4)
عبداللہ بن صالح کہتے ہیں کہ ان کے پڑوس میں ایک عورت نو سال کی عمر میں حاملہ ہوئی اور اس روایت میں یہ بھی درج ہے کہ ایک آدمی نے ان کو بتایاکہ اس کی بیٹی دس سال کی عمر میں حاملہ ہوئی ۔ (کامل لابن عدی جلد5ر قم 1015)
حضرت معاویہ رضی اللہ عنہ نے اپنی بیٹی کی شادی نو سال کی عمر میں عبداللہ بن عامر سے کرائی (تاریخ ابن عساکر جلد70) ۔
امام دارقطنی رحمہ اللہ نے ایک واقعہ نقل فرمایا ہے کہ عباد بن عباد المہلبی فرماتے ہیں میں نے ایک عورت کو دیکھا کہ وہ اٹھارہ سال کی عمر میں نانی بن گئی نو سال کی عمر میں اس نے بیٹی کو جنم دیا اور اس کی بیٹی نے بھی نو سال کی عمر میں بچہ جنم دیا ۔(سنن دارقطنی جلد3کتاب النکاح رقم 3836) ان

ماضی قریبب اور حال کی مثالیں:
اس طرح کے کئی حوالے اس بات پر دلالت کرتے ہیں کہ یہ کوئی انوکھا معاملہ نہیں تھا ، آج کل بھی اخباروں میں اس قسم کی خبریں چھپتی رہتی ہیں ۔
ماضی قریب میں اسی طرح کا ایک واقعہ رونما ہواکہ 8سال کی بچی حاملہ ہوئی اور 9سال کی عمر میں بچہ جنا ۔ (روزنامہ DAWN 29 مارچ1966)
ڈاکٹر ذاکر نائیک نے ایک دفعہ اپنے ایک انٹر ویو بتاتے ہیں کہ : ”حدیث عائشہ رضی اللہ عنہا کے بارے میں میرے ذہن میں بھی کافی شکوک وشبہات تھے۔بطور پیشہ میں ایک میڈیکل ڈاکٹر ہوں۔ ایک دن میرے پاس ایک مریضہ آئی جس کی عمر تقریباً 9سال تھی اور اسے حیض آرہے تھے۔ تو مجھے اس روایت کی سچائی اور حقانیت پر یقین آگیا ‘۔
علاوہ ازیں روزنامہ جنگ کراچی میں 16اپریل 1986ء کوایک خبر مع تصویرکے شائع ہوئی تھی جس میں ایک نو سال کی بچی جس کا نام (ایلینس) تھا اور جو برازیل کی رہنے والی تھی بیس دن کی بچی کی ماں تھی۔
اس طرح روزنامہ آغاز میں یکم اکتوبر 1997کوایک خبر چھپی کہ (ملتان کے قریب ایک گاؤں میں)ایک آٹھ سالہ لڑکی حاملہ ہوگئی ہے اور ڈاکٹروں نے اس خدشہ کا اعلان کیا ہے کہ وہ زچکی کے دوران ہلاک ہوجائے.پھر 9دسمبر 1997کو اسی اخبار میں دوسری خبر چھپی کہ ”ملتان (آغاز نیوز) ایک آٹھ سالہ پاکستانی لڑکی نے ایک بچہ کو جنم دیا ہے. ڈاکٹروں نے بتایا کہ بچہ صحت مند ہے ۔
جب پاکستان جیسے جیسے معتدل اور متوسط ماحول وآب و ہوا والے ملک میں آٹھ برس کی لڑکی میں یہ استعداد پیدا ہوسکتی ہے تو عرب کے گرم آب و ہوا والے ملک میں ۹/ سال کی لڑکی میں اس صلاحیت کا پیدا ہونا کوئی تعجب کی بات نہیں ہے۔
انٹرنیٹ پر بھی اس عمر کی لڑکیوں کے ہاں بچوں کی پیدائش کی بیسوں خبریں موجود ہیں، دو تین ماہ پہلے ایک خبر نظر سے گزری تھی جس میں یورپ کی ایک لڑکی کا بتایا گیا تھا کہ وہ بارہ سال کی عمر میں ماں بن گئی، اورحضرت عائشہ رضی اللہ عنہ کے نکاح پر اعتراض کرنے والے انہی ملحدین نے اسے ورلڈ ریکارڈ قرار دیا تھا..
، جب آپ غورکریں گے کہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے عائشہ رضي اللہ تعالی عنہا کے علاوہ کسی اورکنواری عورت سے شادی نہيں کی بلکہ ان کے علاوہ باقی سب بیویاں ایسی تھیں جن کی پہلے شادی ہوچکی تھی اب یا تو وہ مطلقہ تھیں یا بیوہ ، اس طرح وہ طعن جوکچھ لوگ پھیلانے کی کوشش کرتے ہیں کہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم کا شادی کرنے کا مقصد صرف عورتوں کی شھوت اوران سے نفع اٹھانا تھا زائل ہوجاتا ہے ۔
کیونکہ جس شخص کا یہ مقصد ہو تووہ اپنی ساری بیویاں یا اکثر ایسی اختیار کرتا ہے جوانہتائي خوبصورت ہوں اوران میں رغبت کی ساری صفات پائي جائيں ، اوراسی طرح اورحسی اورزائل ہونے والے معیار بھی ۔
کفار اوران کے پیروکاروں کا اس طرح نبی رحمت صلی اللہ علیہ وسلم میں طعن کرنا اس بات کی غمازی کرتا ہے کہ وہ اللہ تعالی کی طرف سے نازل کردہ دین اورشریعت میں طعن کرنے سے بالکل عاجز آچکے ہیں اب انہيں کچھ نہيں ملا تونبی صلی اللہ علیہ وسلم کی ذات میں طعن کرنا شروع کردیا اورکوشش کرتے ہيں کہ خارجی امور میں طعن کیا جائے ، لیکن اللہ تعالی تواپنے نور اوردین کو مکمل کرکے رہے گا اگرچہ کافر برا مناتے رہیں ۔
اللہ تعالی ہی توفیق بخشنے والا ہے ۔
 بینجامن مہر 

why allah put only 73 hoor in jannah ( urdu )




ملحد ثاقب صاحب کا سوال ......
کیا کوئی دوست مجھے یہ بات سمجھا سکتا ہے کہ جنت میں حوروں کا تعداد باہتر ہی کیوں رکھا گیا ...؟؟؟
یہ جو سات غلمان بتائے گئے ہیں یہ ہی تعداد کیوں رکھا گیا ..؟؟
کیا اس کا کوئی لوجیکلی جواب دوست مجھے سمجھا سکتے ہے ...؟؟
جب اتنی ساری حوریں عنایت فرمائی گئی تو پھر لونڈوں کو رکھنے کی کیا ضرورت پیش آئی ..؟؟
کیا پٹھانوں کو ذھن میں رکھ کر الله نے یہ فیصلہ کیا ...؟؟؟
جواب ........
تحریر: عبدللہ عبدل رحمان
اللہ نے باز نمبرز صرف اس مقصد اور آزمائش کے لئیے مقرر کیے ہیں تاکے مسلمان تو اللہ کا کہا مان کر اس پر یقین کر لیں اور کافر اور ملحد لوگ فضول کے اعتراض کریں اور سوال پوچھیں کے اس کا کیا مطلب ہے ؟ اس کا کیا مقصد ہے ؟ اس نمبر کو بیان کرنے سے اللہ کا کیا مقصد ہے ؟
بےشک اللہ کو پتا تھا کے مسلمان تو کسی بھی نمبر پر یقین کر لیں گے اور ملحد اور کافر لوگوں نے ہر حال میں فضول قسم کے اعتراض کرنا ہیں کیونکے انکا مقصد اللہ کو مان نا نہیں بلکے صرف اللہ کا انکار ہو گا .
بیشک جب ہم ملحدوں سے ایسے سوالات سنتے ہیں تو ہمارا ایمان اور بڑھ جاتا ہے کے اللہ نے ہمیں پہلے ہی بتا دیا ہے . اور ملحدوں کے ان سوالوں سے ہمیں اللہ پر اور قرآن کے حق ہونے پر اور ایمان بڑھ جاتا ہے .
آپ لوگ اس آیت کو پڑھیں اور اللہ پر ایمان اور مضبوط کریں . رہے ملحد تو انہوں نے فضول اعتراض کرتے ہی رہنا ہے . اللہ انکو ہدایت دے یہ کہاں بھٹکے پھرتے ہیں ..............
سورہ مدثر آیت ..............
وَمَا أَدْرَاكَ مَا سَقَرُ 
اور تم کیا جانو کہ دوزخ کیا چیز ہے
﴿27﴾ لَا تُبْقِي وَلَا تَذَرُ 
27)
وہ رحم نہیں کرتی اور نہیں چھوڑتی 
﴿28﴾ لَوَّاحَةٌ لِّلْبَشَرِ 
(28)
وہ کھالوں کو جلا کر سیاہ کر دینے والی 
﴿29﴾ عَلَيْهَا تِسْعَةَ عَشَرَ 
(29)
اور پر انیس (فرشتے ) مقرر ہیں
﴿30﴾ وَمَا جَعَلْنَا أَصْحَابَ النَّارِ إِلَّا مَلَائِكَةً وَمَا جَعَلْنَا عِدَّتَهُمْ إِلَّا فِتْنَةً لِّلَّذِينَ كَفَرُوا لِيَسْتَيْقِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَيَزْدَادَ الَّذِينَ آمَنُوا إِيمَانًا وَلَا يَرْتَابَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَالْمُؤْمِنُونَ وَلِيَقُولَ الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ وَالْكَافِرُونَ مَاذَا أَرَادَ اللَّهُ بِهَذَا مَثَلًا كَذَلِكَ يُضِلُّ اللَّهُ مَن يَشَاء وَيَهْدِي مَن يَشَاء وَمَا يَعْلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكْرَى لِلْبَشَرِ 
(30)
اور ہم نے دوزخ کے دروغے صرف فرشتے رکھے ہیں . اور ہم نے انکی تعداد صرف کافروں (ملحدوں) کی آزمائش کے لئیے مقرر کی ہے تاکہ اہل کتاب ( مسلمان ) یقین کر لیں اور اہل ایمان کے ایمان میں اضافہ ہو جائے اور اہل کتاب اور اہل ایمان شک نا کریں اور جن کے دلوں میں بیماری ہے وہ اور کافر( ملحد ) کہیں کے اس بیان سے اللہ کی کیا مراد ہے (؟ ) اور اسی طرح اللہ جسے چاحتا ہے گمراہ کرتا ہے اور جسے چاہتا ہے ہدایت دیتا ہے ، تیرے رب کے لشکروں کو اس کے سوا کوی نہیں جانتا ، یہ ( قرآن ) تو کل بنی آدم کے لئیے نصیحت ہے .
تحریر : عبدللہ عبدل رحمان ...
اب آتے ہیں آپ کے دوسرے اعتراز پر .
یہ سوال کسی گندے ذہن میں ہی آ سکتا ہے کہ کسی جگہ پر لڑکووں یا لونڈوں کے موجود کا مقصد صرف لونڈے بازی ہی ہوسکتا ہے 
یہ سوال کسی ملحد ہی کی عقل میں ہی سما سکتا ہے . 
بہرحال ہمیں علمی جواب ہی دینا چاہیے کے شاید کسی کو ہدایت آ جائے .
لیجئے جنت میں لڑکوں کے وجود کا مقصد ...... جنت میں جو لڑکے ہونگے وہ گیر مسلمون ، کافروں اور ملحدوں کے ایسے بچے ہونگے جو ناسمجھی کی عمر میں فوت ہو جائیں تو چونکہ وہ نا سمجھ تھے اس لئیے اللہ انھیں بھی جنت میں داخل کریں گے . سبحان اللہ اللہ کی شان ........
سورہ دھر .......
وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُّخَلَّدُونَ إِذَا رَأَيْتَهُمْ حَسِبْتَهُمْ لُؤْلُؤًا مَّنثُورًا ( 19 ) 
(19)
اور ان کے آس پاس خدمت میں پھریں گے ہمیشہ رہنے والے لڑکے جب تو انہیں دیکھے تو انہیں سمجھے کہ موتی ہیں بکھیرے ہوئے.
اب احادیث سے رہنمائی لیتے ہیں ... یہ بچے کون ہیں .....؟؟؟
مسلموں کے وہ بچے جونابالغ مرجائیں یا وہ جو پیدائشی مجنون ہوں یا پیدائشی طور پر تو ٹھیک ہوں لیکن بلوغ سے پہلے مجنون ہوجائیں اور اسی حالت میں فوت ہوجائیں تو ایسے لوگ صحیح قول کے مطابق جنت میں ہوں گے۔
واما اطفال المشرکین ففیھم ثلثۃ مذاہب قال الاکثرون ہم فی النار تبعا لآبائھم وتوقفت طائفۃ فیھم والثالث وھو الصحیح الذی ذہب الیہ المحققون انھم من اھل الجنۃ۔ (نووی شرح مسلم ۲/۳۳۷)"
صحیح قول کے مطابق غیر مسلموں کے بچے جنتی ہیں۔ اللہ تعالیٰ کا ارشاد ہے:
﴿ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولاً﴾ (الإسراء:15)
’’
اور ہماری سنت نہیں کہ رسول بھیجنے سے پہلے ہی عذاب کرنے لگیں۔‘‘
جب اللہ تعالیٰ کسی بالغ شخص کو دعوت پہنچنے سے پہلے عذاب نہیں دیتے تو بچے کو کس طرح عذاب دے سکتے ہیں۔
اس کی تائید اس حدیث سے بھی ہوتی ہے جس میں آپﷺ نے فرمایا:
’’
كل مولود يولد على الفطرة ‘‘ (متفق علیہ)
’’
ہر پیدا ہونے والا فطرت پر پیدا ہوتا ہے۔‘‘
مسند احمد میں ہے کہ نبی کریمﷺ نے ارشاد فرمایا:
’’
النبي في الجنة والشهيد في الجنة والمولود في الجنة ‘‘ (مسند احمد :21125)
’’
نبی، شہید اور مولود جنتی ہیں۔‘‘
لہٰذا اگر غیر مسلموں کے بچے بلوغت سے پہلے فوت ہوجائیں تو وہ جنتی ہیں۔
اب آپ خود سوچیں کی یہ آپ ہی کے بچے ہوں گے جن کے بارے میں آپ کی اتنی بری سوچ رکھی . آپ پر ترس ہی کھایا جا سکتا ہے ..... 
اللہ آپ کو ہدایت دے . اور سوچنے کی توفیق دے .
 abdul rahman

Saturday, September 24, 2016

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کیسے اور کیوں ؟


تحریر : محمّد سلیم
اور جب ان سے کہا جاتا ہے کہ اس کی پیروی کرو جو ﷲ نے نازل کیا تو کہتے ہیں ہم تو اس پر چلیں گے جس پہ اپنے باپ دادا کو پایا ۔ کیا اگرچہ ان کے باپ دادا کچھ نہ عقل رکھتے ہوں نہ ہدایت ؟"

قرآن ۔ سورہ البقرہ ۔ آیت 70
دنیا کا کوئی بھی مذہب جس کا تعلق عقل کے بجائے محض عقیدت سے ہو وہ اپنے ماننے والوں کو ایسی نصیحت نہیں کرتا ۔ یہ اپنے ہی پیروں پر کلہاڑی مارنے والی بات ہے ۔ جبکہ قرآن جگہ جگہ عقل استعمال کرنے کے مشورے دیتا ہے ۔ یہ عقل ہی ہے جس کی بنیاد پر آخرت میں جنت اور جہنم کا فیصلہ ہونا ہے ورنہ اگر آپ غور کریں تو دینِ اسلام میں نابالغ بچے اور مجنوں پر کوئی گناہ نہیں ۔ گناہ گار صرف وہ جس کو عقل دی گئی تھی اور اس نے اس عقل کا استعمال کر کے ہدایت نہ پا لی ۔
عموماً لوگ سوال کرتے ہیں کہ اگر ماں باپ ہی حق پر نہ ہوں تو اولاد سیدھی راہ پر کیسے چل سکتی ہے ؟ ظاہر ہے جب تربیت کرنے والے نے تربیت ہی شرک کے خطوط پہ کر دی تو اولاد بیچاری کیا کرے ؟

دینِ اسلام میں اس کا بھی جواب موجود ہے کہ باپ کے گناہ پر بیٹا نہیں پکڑا جائے گا نہ بیٹے کے گناہ پر باپ ۔ ہر شخص چونکہ اپنی عقل لے کر پیدا ہوا لہٰذا اپنا حساب دے گا ۔ تربیت کی اہمیت اپنی جگہ مگر بنیاد اور پیمانہ ہمیشہ عقل ہی رہے گی ۔ تربیت تو جانوروں کی بھی کی جا سکتی ہے ۔ اور ان کو کوئی مخصوص عمل کرنے پر آمادہ کیا جا سکتا ہے مگر انسان اور جانور میں بنیادی فرق عقل کا ہے ۔
ایک بندر کو آپ ناچنے کی تربیت دے دیں تو وہ ساری زندگی ناچ ناچ کر آپ کو پیسے کما کر دیتا رہے گا ۔ مگر ایک انسان کو آپ بچپن ہی سے ناچنے کی تربیت دینا شروع کر دیں ۔ وہ آپ کی دی ہوئی تربیت پہ لاشعوری طور پر بہت کم عرصہ چلے گا ۔ شعور سے روشناس ہوتے ہی اس کے اندر یہ قوتِ فیصلہ پیدا ہو جائے گی کہ اب مزید مجھے یہ کام کرنا ہے یا نہیں ۔ یعنی اب اگر وہ مزید یہ کام کرتا ہے تو اپنی مرضی سے کرے گا نا کہ کسی تربیت کے زیرِ اثر ۔
قرآن میں ﷲ تعالیٰ فرماتے ہیں کہ ہم نے آدم ع کو مختلف اشیاء کے نام سکھلا دئے اور پھر فرشتوں کے سامنے ان کو پیش کر کے کہا کہ اب تم ان چیزوں کے نام بتاؤ اگر تم سچے ہو ۔ فرشتے بولے اے ﷲ ! تُو پاک ہے ۔ ہم اس کے سوا کچھ علم نہیں رکھتے جو تُو نے ہمیں عطا کیا ۔
اس آیت کو سمجھنے میں مجھے کئی دن لگے ۔ سوچ کا محور یہ تھا کہ جب ﷲ نے آدم کو چیزوں کے نام بتا دئے تو فرشتوں کو بھی بتا دینے چاہئے تھے ۔ تاکہ وہ بھی بتا دیتے ۔ مقابلہ برابر کا ہو جاتا ۔

بات سمجھ میں یہ آئی کہ انسانی فطرت میں اور دوسری مخلوقات کی فطرت میں زمین آسمان کا فرق ہے ۔ دوسری کئی مخلوقات انسان سے پہلے سے اس زمین سے روشناس ہیں ۔ انسان کی پیدائش سے پہلے جنات بھی موجود تھے اور فرشتے بھی ۔ مگر ان کے علم کی حد بس اتنی ہی تھی جتنا ﷲ نے ان کو عطا کیا ۔ مگر انسان کا معاملہ یہ نہیں ہے ۔ انسان تجسس کا مارا کبھی سمندر کی تہوں میں قدرت کی فنکاری کے نمونے دیکھتا ہے کبھی خلاؤں میں ۔ ایک چیل کو اڑتا دیکھ کر جہاز ایجاد کرتا ہے ۔ وہیل مچھلی کو دیکھ کر آبدوز بنا لیتا ہے ۔ ﷲ کی بنائی ہوئی ہر چیز کی نقل بنانے پر کوشاں ہے ۔ اور ﷲ کی بنائی کائنات کے رازوں سے پردہ اٹھانے کے لئے جدوجہد کرتا ہے ۔ دیگر مخلوقات میں یہ خصوصیت نہیں پائی جاتی ۔ فرشتوں کو اگر نام بتائے بھی گئے ہوں گے تو انہوں نے صرف نام ہی بتائے ہوں گے ۔ جب کہ انسان نے ان چیزوں کا پورا بائیو ڈیٹا نکال لیا ہو گا ۔ انسانی عقل محض اس بات پر مطمئین نہیں ہوتی کہ یہ کیا ہے کیسے ہے ۔ بلکہ وہ اس بات کو بھی کھوجتی ہے کہ یہ کیوں ہے ؟ اور جب انسان "کیوں" کے جواب کو کھوجنے نکلتا ہے تو اس کی تلاش اس کے خالق پہ ختم ہوتی ہے ۔ ہدایت اسی کو کہتے ہیں ۔
ملحد اور مسلمان کی سوچ میں بھی اس "کیسے" اور "کیوں" کا ہی فرق ہے ۔

مثلاً ہم کھانا کیسے کھاتے ہیں ؟ بچہ کیسے پیدا ہوتا ہے ؟ پیدا ہوتے ہی ماں کا دودھ کیسے پینا ہے ؟ اس علم میں تمام مخلوقات برابر ہیں ۔ کیا جانور, کیا ملحد اور کیا مسلمان ۔ مگر "کیوں" کی کھوج صرف مسلمانوں کا ہی وصف ہے ۔
ہم کھانا کیوں کھاتے ہیں ؟ بچہ کیوں پیدا ہوتا ہے ؟ پیدا ہوتے ہی ماں کی چھاتی میں دودھ کیوں تلاش کرتا ہے ؟ ان سوالات کا تعلق خالصاً مذہب سے ہے ۔ کیوں کہ اس تلاش کا دوسرا سرا خدا کی ذات ہے ۔
خدا کے انکار کی صورت میں کئی سوال حل طلب رہ جاتے ہیں ۔
یہ کائنات کیسے وجود میں آئی ؟
بگ بینگ ہوا تھا ۔
بگ بینگ کیوں ہوا تھا ؟
جواب ندارد
زندگی کی ابتدا کیسے ہوئی ؟
ارتقاء کی پوری ٹوٹی پھوٹی داستان سن لیجئے ۔
زندگی کی ابتدا کیوں ہوئی ؟
جواب ندارد ۔
پھلوں میں ذائقہ کیسے آیا ؟
وٹامن کی وجہ سے ۔
پھلوں میں ذائقہ کیوں آیا ؟
جواب ندارد ۔
سائنس صرف طریقۂ کار کی وضاحت کرتی ہے ۔ وجوہات کا تعین کرنا سائنس کا دائرہ کار نہیں ۔ یہ مذہب کا دائرہ کار ہے ۔
عموماً الحاد میں اعتراض کیا جاتا ہے کہ مذہبی لوگ جب کسی معاملے کو سمجھ نہیں پاتے تو اس کو خدا پر ڈال کر مطمئین ہو جاتے ہیں جبکہ غیر مذہبی لوگوں کی جستجو ختم نہیں ہوتی بلکہ وہ حقائق کی تلاش میں سرکرداں رہتے ہیں ۔
مگر میرے الحاد سے ٹکراؤ کے بے شمار تجربوں کا نچوڑ یہ ہے کہ یہ بات اس دنیا کا سب سے بڑا جھوٹ ہے ۔ میں نے جب بھی کسی ملحد سے "کیوں" کا سوال اٹھایا ہے اسے بھاگتے ہی پایا ہے ۔ بہت کم ملحد ایسے ٹکرے جنہوں نے جواب دینے کی ناکام کوششیں کیں ۔ مگر حقیقی معنوں میں کسی بھی کام کے ہونے کی وجوہات کو تلاش کرنے کی کوشش نہ ملحد کرتے ہیں نہ سائنس دان ۔ کیوں کہ عقل بتاتی ہے کہ یہ تلاش خدا پر ایمان پہ جا کر ختم ہوتی ہے ۔
میں نے کئی مرتبہ ملحدوں سے یہ سوال پوچھا کہ پھلوں کے ذائقے مختلف کیوں ہوتے ہیں ؟ پھل اتنے لذیذ اور ذائقے دار کیوں ہوتے ہیں ؟ کیا قدرتی انتخاب میں یہ ممکن نہ تھا کہ ہر پھل کا ذائقہ گندم جیسا ہی ہوتا ؟ یا ذائقہ سرے سے ہوتا ہی نہ ؟ ضرورت کیا تھی ذائقے کی ؟ مجھے ایک خاتون ملحدہ کے سوا کسی نے جواب دینے کی کبھی کوشش ہی نہ کی ۔ ان خاتون کا جواب بھی "کیسے" پر مبنی تھا ۔ "کیوں" کا جواب وہ بھی نہ دے پائیں ۔ جانوروں کے جسموں پہ بنے خوبصورت نقش و نگار ۔ پھولوں کے رنگ ان کی خوشبو ۔ کیا یہ سب زندہ رہنے کے لئے ضروری تھا ؟
فطری انتخاب لیجئے یا بقائے اصلاح, صرف ضروریات کی وضاحت کی گئی ہے ۔ آپ کو بس یہی کہانیاں سننے کو ملیں گی کہ جس چیز کی ضرورت پڑتی چلی گئی وہ خودبخود اگتی چلی گئی اور جو چیز غیر ضروری تھی وہ ختم ہوتی چلی گئی ۔ انسان کو بیوقوف بنانے کے لئے یہاں تک کہا گیا کہ لذت اور ذائقہ کچھ نہیں سوائے ہمارے دماغ کی اختراع کے ۔
عجیب نظریہ جس میں کبھی کچھ کہا جاتا ہے اور کبھی اسی بات کے متضاد کوئی دوسری بات کر دی جاتی ہے ۔
مثلاً اگر سوال پوچھا جائے کہ ڈائناسارز کیوں ختم ہو گئے ؟
تو جواب ملتا ہے کہ وہ اپنے ماحول سے مطابقت نہ رکھ پائے اس لئے ناپید ہو گئے ۔
اب اگر پوچھا جائے کہ اونٹ کے اندر صحرا میں پیش آنے والی مشکلات کے لئے خصوصی صلاحیتیں کس نے ڈالیں ؟
تو جواب آتا ہے کہ چونکہ وہ صحرا میں پیدا ہوا لہٰذا اس ماحول میں زندہ رہنے کے لئے ازخود اس کے اندر یہ صلاحیتیں پیدا ہوتی چلی گئیں ۔
یعنی ایک طرف ایک جانور جو ماحول سے مطابقت نہ ہونے کی وجہ سے ناپبد ہو گیا اور دوسری طرف ایک جانور جس نے ماحول سے مطابقت نہ ہونے کے باوجود اپنے آپ کو برقرار رکھا ۔ بلکہ اس کے اندر خود بخود ایسے اعضاء پیدا ہو گئے کہ وہ صحرا میں زندہ رہ سکے ۔
کیا کہئے اس کو کہ ایک جاندار فطری انتخاب کی بھینٹ چڑھ گیا دوسرا بقائے اصلاح کا منظورِ نظر ٹہرا ؟
مجھے تو آج تک یہ بھی نہ سمجھ آیا کہ فطری انتخاب میں فطرت سے کون مراد ہے ؟ انتخاب کے لفظ سے لگتا ہے کہ یہ کوئی رینڈم سلیکشن نہیں بلکہ سوچا سمجھا انتخاب تھا ۔ کس نے سوچا کہ اونٹ کو باقی رہنا چاہئے اور ڈائناسارز کو ناپید ہو جانا چاہئے ؟
صرف ان دو جانوروں کی مثالوں سے کئی سوال جنم لیتے ہیں ۔ مگر جواب دینے والا کوئی نہیں ۔ خدا کا انکار کرنے کا شوق ہے بس ۔ چاہے اس کے نتیجے میں ذلت اور رسوائی مقدر بن جائے ۔


Thursday, August 25, 2016

किया मज़हब खौफ और लालच की बुनियाद पर बना है ? ( उर्दू पोस्ट )

کیا مذہب خوف اور لالچ کی بنیاد پر بنا ہے؟

آج کل مختلف ذرائع سے اس بات کا پروپیگنڈا کیا جارہا ہے کہ مذہب کی بنیاد خوف ہے۔ یعنی مذہب یا مذاہب کےبانی انسان کو اس خوف میں مبتلاء کرتے ہیں کہ اگر مذہب کو نہیں مانو گے یا مذہب جو رویہ اختیار کرنے کو کہتا ہے اس کے مطابق نہیں چلو گے تو ایک برے انجام سے دوچار ہو جاؤ گے۔ انسان اس خوف کی بنیاد پر مذہبی بنتا ہے۔ اس طرح یہ تاثر دیا جاتا ہے کہ مذہب انسان کی اس کمزوری کا استحصال کر کے انسان کو اپنا پابند بناتا ہے۔
چونکہ ہم مسلمان ہیں اس لئے یہاں پر صرف اسلامی تناظر میں بات کی جائے گی۔ ہم جب قرآن میں دیکھتے ہیں کہ کفر کرنے والوں اور اللہ کے احکامات کو رد کرنے والوں کے لئے دردناک عذاب کی وعید دی جا رہی ہے تو ہمیں بھی لگتا ہے کہ بات صحیح ہے۔
اس الزام کے ساتھ ایک اور الزام بھی نتھی کردیا جاتا ہے کہ مذہب نہ صرف خوف بلکہ لالچ اور حرص کی بنیاد پر بھی ہے۔ یعنی انگریزی محاورے کے مطابق مذہب سٹک اور کیرٹ (Stick and carrot)کی چال چل کر انسان کو اپنا پابند بناتا ہے۔ جب ہم قرآن میں دیکھتے ہیں کہ اللہ تعالی نے ایمان لانے والوں اور نیک عمل کرنے والوں کے بڑے بڑے انعامات رکھے ہیں تو ہمیں لگتا ہے کہ واقعی میں الزام صحیح ہے۔
اول تو ہمیں یہ سمجھنا چاہیے کہ خوف اور لالچ کی بنیاد پر کسی کو پابند بنانے میں برائی کیا ہے؟
مثلاً اگر کوئی بندہ اپنے ملک کے قانون کی پابندی نہیں کرے گا تو اسے سزا ملنے کا خوف دلایا جاتا ہے۔
اگر کسی کمپنی میں سیلزمین زیادہ سیلز کرے گا تو اسے کمیشن کا لالچ دیا جاتا ہے۔ اور اگر مطلوبہ ٹارگٹ حاصل نہ کرے تو اسے اپنے روزگار سے ہاتھ دھونا پڑ سکتا ہے۔
اگر طالب علم محنت کر کے مطلوبہ نمبر حاصل نہ کرے تو وہ فیل ہوسکتا ہے اور اگر طالب علم زیادہ محنت کر کے پوری کلاس میں سب سے زیادہ نمبر حاصل کرے تو اسے انعام ملے گا۔
اوپر کی تمام مثالوں پر غور کرنے سے ہمیں معلوم ہوتا ہے کہ ان تمام حالتوں میں خوف اور لالچ کا استعمال بالکل صحیح ہے اور کوئی اسے غلط نہیں سمجھتا۔ تو سوال پیدا ہوتا ہے کہ ان تمام حالات میں خوف اور لالچ کا استعمال ہمیں برا کیوں نہیں لگتا اور مذہب میں اس کے استعمال پر اعتراض کیوں؟
اس کی وجہ یہ کہ ہم قانون کی پابندی کے اخلاقی اور منطقی جواز کے قائل ہیں۔ اسی طرح ہم اس بات کے بھی قائل ہیں کہ ایک کمپنی کسی کو تنخواہ دے رہی ہے تو اس ملازم کی بھی ذمہ داری ہے کہ وہ کمپنی کو فائدہ پہونچائے۔ اسی طرح ہم اس بات کو بھی منطقی مانتے ہیں کہ تعلیم کے لئے امتحانات ضروری ہوتے ہیں اور کامیاب طالب علم کو ہی اگلی کلاس میں بھیجا جانا چاہئے۔
یعنی اگر کسی چیز کا منطقی اور اخلاقی جواز موجود ہو تو اس کے لئے خوف اور لالچ کا استعمال بالکل ہی جائز ہونا چاہئے۔
یہ جب غلط ہے جب کسی کو خوف یا لالچ دلا کر کسی ایسے کام پر مجبور کیا جائے جس پر اس کا ضمیر مطمئن نہیں ہو۔ یا یہ جب غلط ہے جب خوف کی ایسی کیفیت پیدا کیا جائے کہ اس بندے کو اس کے اخلاقی یا منطق جواز پر غور کرنے کا موقعہ ہی نہ ملے۔
اب ذرا قرآنی نکتہ نظر کو دیکھا جائے، قرآن تو اصل میں ہمیں دعوت دیتا ہے اور جس چیز کی دعوت دیتا ہے اس کے لئے انسان کی سمجھ اور شعورسے اپیل کرتا ہے، اس کے ضمیر کو جھنجوڑتا ہے، اپنی دعوت کے لئے انسانی فطرت ، انسانی عقل اور انسانی تاریخ کو گواہ بناتا ہے۔ اور اس کے باجود جب انسان قرآن کی دعوت کو رد کرتا ہے تو پھر خبردار کرتا ہے کہ تمہارا اس دعوت کو رد کرنا اس مقصد کی صریح خلاف ورزی ہے جس کے لئے تمہارے خالق نے تمہیں پیدا کیا ۔ اس لئے اس سرکشی کے انجام میں سخت سزا دی جائے گی۔ اس کے ساتھ ہی اس بات کی طمع دلاتا ہے کہ تمہارے خالق نے جس مقصد کے لئے تمہیں پیدا کیا اگر اس مقصد کو پورا کروگے تو اس کے نتیجے میں تم اللہ کے انعامات اور اس کی رضا کے مستحق ٹہروگے۔
حقیقت یہ ہے کہ سزا وجزا اللہ کے عدل کا لازمی تقاضا ہے۔ سزا و جزا پر اعتراض کا مطلب یہ ہے کہ انسان یہ مطالبہ کر رہا ہے کہ اللہ اپنے فرماں برداروں اور سر کشوں کے ساتھ ایک قسم کا معاملہ کرے۔ ایسا مطالبہ کرنے والوں کو اس بات پر کوئی اعتراض نہیں کہ قانون کی خلاف ورزی کرنے والوں کو سزا ہو، امتحان میں کم نمبر حاصل کرنے والوں کو فیل کردیا جائے اوراپنی ذمہ داری پوری نہ کرنے والے ملازم کو فارغ کردیا جائے۔
الغرض اسلام میں سچ مچ خوف بھی ہے اور طمع بھی ہے۔ لیکن خوف و طمع سے پہلے اسلام اپنا اخلاقی اور منطقی مقدمہ پیش کرتا ہے اور پھر نہ ماننے والوں کو وعید اور ماننے والوں کو خوشخبری دیتا ہے۔ اعتراض کرنے والے سیکولر اور ملاحدہ خوف اور طمع کا ذکر کچھ ایسے انداز میں کرتے ہیں گویا کہ اسلام ایک اندھا بہرا مذہب ہے اور اس میں فرماں برداری کرنے کی ترغیب کی بنیاد صرف اور صرف خوف و طمع ہے اور اس کی کوئی اخلاقی اور منطقی بنیاد نہیں ہے۔
اگر کوئی ملحد یا کافر اسلام کے پیش کردہ اخلاقی اور منطقی بنیاد پر مطمئن نہیں ہے تو اسے چاہئے کہ اس جواز پر بحث کرے۔ یہ رویہ اختیار نا کہ گویا کہ اسلام خوف و طمع کے علاوہ اپنا کوئی مقدمہ رکھتاہی ایک فریب ہے جس کے ذریعے سے مسلمانوں کے دلوں میں تشکیک کے بیج بونے کی کوشش کی جاتی ہے۔
اس قسم کے اعتراضات میں ایک تناقض بھی ہوتا ہے جسے نظر انداز کردیا جاتا ہے۔ اسلام جو خوشخبریاں اور وعیدیں دیتا ہے اس کا اثر صرف اس پر ہوسکتا ہے جو اسلام پر یقین رکھتا ہے۔ جو اسلام پر یقین نہیں رکھتا ظاہر بات ہے کہ وہ ان خوشخبریوں اور وعیدوں پر بھی یقین نہیں رکھتا۔ اب اگر کسی پر اس خوف و طمع کا اثر ہورہا ہے تو اس کا مطلب یہی ہے کہ وہ اس بات پر یقین رکھتا ہے کہ اس کا کوئی خالق ہے اور اس کے خالق نے اسے ایک خاص مقصد کے لئے پیدا کیا ہے۔ اس کا واضح ترین مطلب یہ ہے کہ سزا و جزا کو ماننے والا لازمی طور پر سزا و جزا کے اخلاقی اور منطقی جواز پرپہلے سے مطمئن ہوتا ہے۔
جو شخص اسلام پر یقین نہیں رکھتا وہ اسلام کی بیان کردہ خوشخبریوں اور وعیدوں پر بھی یقین نہیں رکھے گا۔ اس لئے اس پر نہ اسلام کی پیش کردہ دھمکیوں کا کوئی اثر ہوگا اور نہ اسلام کی مجوزہ تحریص و ترغیب کا۔ ایسے میں اسلام کی تشریح خوف و طمع کی بنیاد پر کرنے کا کوئی جواز نہیں بنتا سوائے اس کے کہ اعتراض کرنے والا ابھی یہی طئے نہیں کرپایا کہ وہ اسلام کو مانے یا رد کردے۔ الحاد و تشکیک کے دلدادوں کا مسئلہ ہی یہ ہے کہ وہ یہی طئے نہیں کرپاتے کہ انہیں ماننا کیا ہے۔ یہ شہوات اور دنیا کی لذتوں کو منتہائے مقصود بنانے کے بعد اپنے انجام کے خوف کو کم کرنے کی بھونڈی کوشش ہے۔
تحریر: ذیشان وڑائچ

खुदा को किस ने बनाया ? एक साइंटिफिक साइड ( उर्दू पोस्ट )




خدا کو کس نے بنایا ایک سائنسی رخ


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شعور کے خوگرانسان کے لیے خدا کا وجود ہمیشہ ایک معمّہ ہی رہا ہے اور ہر دور میں علم، منطق اور عقل کی روشنی میں خدا کو جاننے کی کاوشیں جاری رہی ہیں۔ آئیے! اسی عقل، منطق، علم اور سائنس کی دریافتوں کی روشنی میں خدا کو سمجھنے کی کوشش کرتے ہیں۔ لیکن خدا کے وجود کا پیرایہ سمجھنے سے پہلے وجود کی ماہیّت سمجھنا ضروری ہے کہ وجودیت خود کیا ہے!
وجود کا قفس : Cage of Existence
انسان اور اس کی عقل و شعور کا موجود ہونا بذات خود ایک عجوبہ ہے۔ انسان جب کائنات کی تخلیق کے حوالے سے خدا کے وجود پر غور کرتا ہے تو اس کی عقل اس لیے معطّل ہوجاتی ہے کہ وہ وجودیت کے پیرائے کو اپنے شعور میں ایک فطری اور سختی سے پیوست تاثر کا پرتو ہی سمجھنے پر مجبور ہے۔ انسان طبعی وجودیت میں قید ہے اور اپنے محدود شعور کے باوصف وجود کے حوالے سے اسی طبعی وجودیت کو حرف آخر سمجھتا ہے۔ یہی ایسی بھول بھلیّاں ہے جس میں انسان صدیوں سے گھوم رہا ہے اور نکل نہیں پا رہا۔ جدید علوم اور نئی دریافتوں نے اس مخمصے میں اضافہ کیا ہے۔ حقیقت آشنائی کے لیے اب کسی اچھوتی سوچ کی ضرورت ہے جو اس طبعی وجودیت کے قفس کے قفل کو توڑدے جس میں انسانی تخیّل مقیّد ہے اور ایک عقلی اور شفّاف نقطۂ نظر سے کائنات، وجودیت اور خدا کو جانے۔ اس کے لیے سائنسی طریقہ کار اپنانا ہوگا کہ مفروضات hypothesis کا سہارا لے کر علم اورعقل کی کسوٹی پر ان کو پرکھاجائے۔ آئیں ہم غور کرتے ہیں کہ کیا وجودیت اور زندگی خود بھی مخلوق ہیں؟
زندگی کی ساخت: Fabric of Life
وجود زندگی سے ہے اور زندگی کی ساخت ایٹم اور خلیے سے ہے۔ایک نکتہ یہ بھی مدّنظر رہے کہ ہر عنصر کی اکائی ( ایٹم) ایک پس پردہ فطرت اور جبلّت کی خوگر ہوتی ہے۔آکسیجن اگر آگ جلاتی ہے تو کاربن اسے بجھاتی ہے۔ یہ ان کی جبلّت ہے۔ سائنس اسے خاصیّت یا property کہتی ہے۔ کسی بھی عنصر کی کارکردگی اس کی جبلّت کے طابع اور متعیّن حدود میں ہی ہوگی۔ منطقی طور پر کسی بھی زندگی کی حواسی اور شعوری صلاحیّت اس کو پروان چڑھانے والے بنیادی عوامل کی جبلّت کے رنگ میں ہی عیاں ہوگی۔ اس کی وضاحت اس طرح کی جاسکتی ہے کہ اگر زندگی فوٹون سے ابھرتی ہے تو کیونکہ فوٹون غیرمرئی ہے اور اس کی جبلّت بے قراری ہے یعنی یہ ایک سیماب صفت اکائی ہے جو بہت رفتار سے چلتی ہے تو اس سے متعلق زندگی بھی غیرمرئی اور برق سے زیادہ تیز رفتار ہوسکتی ہے۔ اسی طرح عناصر اور کائناتی قوتوں کی اکائیاں بھی اپنی جدا خاصیّتوں کے ساتھ موجود ہیں۔
خلوی زندگی:Cellular Life
سائنسی دریافتیں بتاتی ہیں کہ وجود میں آنے کے بعد کائنات رفتہ رفتہ ٹھنڈی ہونی شروع ہوئی، پھر ایک وقت میں زمین پر حالات ایسے سازگار ہوئے کہ پانی میں ایٹم سے بنے خلیے سے زندگی پھوٹ پڑی جس میں طویل ارتقائی منازل طے کرتے ہوئے بقول سائنسداں انسان اپنے شعور کے ساتھ جلوہ گر ہوا۔
سوال یہ ہے کہ زندگی کیا ہے؟
زندگی ایک فعّال اور بے چین معمّہ یا “چیز” ہے جو اپنے آپ کو خاص ماحول میں عیاں کرنے کی جبلّت رکھتی ہے۔ زندگی ایک آزاد اور کھلا راز ہے جو ہر طرح کے ماحول میں ابھرنے کی صلاحیّت رکھتا ہے۔ یہ ایک غیر مرئی سچّائی اور وقوعہ Phenomenon ہے جو موجود ہے۔
سائنس کے مطابق کائنات ایٹم سے بنی اور زندگی خَلیے cell میں شعور کا نام ہے۔
تو پھر شعور کیا ہے؟
شعور احساس زندگی ہے مگر سائنس کے مطابق شعور زندگی کی پہیلی کا ایک حصہ اور غیر حل شدہ عُقدہ ہے۔
اب سوال اٹھتے ہیں کہ:
کیا حیات صرف خلیات ہی میں محصور ہے؟
کیا حیات صرف اور صرف پانی سے ہی ابھر سکتی ہے؟
اجنبی حرارتی اورمقناطیسی زندگی: Alien Thermal & Magnetic Life
اب ایک دوسرا رخ بھی دیکھے۔ سائنس کے نظریے کے مطابق کائنات بگ بینگ سے وجود میں آئی۔ اس نظریے کا سادہ سا تجزیہ کریں تو ظاہر ہوتا ہے کہ اس ابتدائی وقت میں نہ صرف توانائی اور قوّتیں موجود تھیں بلکہ ہر طرح کے مادّے، اجرام فلکی اور ہر طرح کی حیات اور فطری قوانین بھی آپس میں ضم تھے۔ شروع میں ہر طرف آگ تھی جو ٹھنڈی ہونا شروع ہوئی اورجوں جوں کائنات پھیلی تو رفتہ رفتہ تمام چیزیں عیاں ہوتی گئیں۔ سمجھنے کی بات یہ ہے کہ اس دوران زندگی کی سچّائی بھی ایک غیرمرئی صورت میں موجود رہی ہوگی اور مختلف ادوار میں قدرتاً مختلف صورتوں میں عیاں ہوئی ہوگی۔ کیا ایسا ممکن نہیں کہ جس طرح عناصر خلیات بناتے ہیں اسی طرح کچھ مخصوص پارٹیکل یا قوّتیں مل کر ایسی چیز بناتے ہوں جس میں ایک بالکل جدا پیرائے کی حیات اور شعور ابھرتے یا ظاہر ہوتے ہوں! پانی سے پہلے کیا زندگی توانائی، قوّت اور حرارت کے پیرائے جیسے روشنی یا ثقل سے پیدا ہوکر کسی اجنبی شعور کے ساتھ ارتقاء پذیر نہ ہوئی ہوگی؟ ہم کس منطق یا علم کے تحت ایسی حیات کو مسترد کریں گے جو شاید کائنات کے کسی گوشے میں موجود بھی ہو۔
سوال یہ ہے کہ: ایسا کیوں نہیں ہوا ہوگا؟
کیونکہ زندگی موجودہ دور میں بھی زمین پر آتش فشانی ماحول میں ایک اچھوتے پیرائے میں خود کو ظاہر کر رہی ہے لہذٰا ثابت ہوتا ہے کہ زندگی میں خود کو آتشی ماحول میں عیاں کرنے کی قوّت ہمیشہ سے موجود ہے۔ ہماری زمین پر ہی سمندر کی گہرائی میں آتش فشانی وینٹ میں حالیہ دریافت شدہ ٹیوب وارم جو سورج کی روشنی کے بغیر زندہ ہیں اور توانائی حاصل کرنے کے لیے کیمیکل پر انحصار کرتے ہیں، ایک عجوبہ ہیں۔ یہ شعاع ِ ترکیبی photosynthesis کے بجائے کیمیا ترکیبی Chemosynthesis سے توانائی حاصل کرتے ہیں اور دلچسپ امر یہ ہے کہ گو کہ دونوں طریقوں میں کاربن ڈائی آکسائڈ اور پانی استعمال ہوتے ہیں لیکن کیمیا ترکیبی میں آکسیجن کے بجائے سلفر خارج ہوتی ہے۔
Instead of photosynthesis, vent ecosystems derive their energy from chemicals in a process called “chemosynthesis.” Both methods involve an energy source (1), carbon dioxide (2), and water to produce sugars (3). Photosynthesis gives off oxygen gas as a byproduct, while chemosynthesis produces sulfur.
http://science.nasa.gov/science-news/science-at-nasa/2001/ast13apr_1/
اس سے ہمارے اس نظریہ کو تقویت ملتی ہے کہ کائنات میں حرارت اور روشنی سے مختلف حیات کاعیاں ہونا بعید از قیاس نہیں کیونکہ اِس وقت زمین پر معتدل حالات میں بھی مذکورہ بالا زندگی کاایک نئی طرز میں ظاہر ہونا زندگی کی اپنی طاقتور اور ہمہ جہت جبلّت اور وصف کا مظہر ہے۔ یعنی زندگی کا وقوعہ of Life Phenomenon مختلف ماحولیات میں اپنے آپ کو ظاہر کرنے کی صلاحیّت رکھتا ہے۔ گویا یہ کثیر الجہت dimensional Multi ہے۔ ایک منطقی بات یہ سامنے آتی ہے کہ اگر زندگی کی جہتیں ایک سے زیادہ ہوں گی تو وجود کی ماہیّت بھی مختلف ہوسکتی ہے کیونکہ ان کی آفرینش کے جبلّی پیرائے غیرطبعی اور عام انسانی حواس سے ماورا ہوں گے لہذا اس بنیاد پر پیدا ہونے والی زندگی بھی اپنے وجود کے حوالے سے انسان کے لیے نہ صرف غیرمرئی ہوگی بلکہ انسانی حواس سے ماورا ہوگی جیسے ثقل، مقناطیس، روشنی سے منسلک زندگی نامعلوم پیرائیوں میں موجود ہوسکتی ہے۔ وہ اپنے اپنے وجودی پیرائے میں زندہ ہوں گی اور اپنے اپنے شعوری اور عقلی دائرے میں علمی ارتقاء کی طرف گامزن بھی ہو سکتی ہیں۔ یعنی انسان ہی اپنے علم کے تئیں کائناتی زندگی کی ابتدا کو پانی تک محدود سمجھتا رہا ہے جبکہ حقیقت اس کے خلاف بھی ہوسکتی ہے۔
مشترک اور مختلف جبلّت : Common & Diverse Intrinsic
ایک سوال یہ اٹھتا ہے کہ زندگی کے لیے مانوس ماحول ہائیڈروجن اور آکسیجن کے ملاپ سے پیدا ہوا تو اور دوسرے عناصر کے ملاپ سے کیوں نہ پیدا ہوا۔ اس کی وجہ یہ ہو سکتی ہے کہ یہ دو عناصر ایک ایسی چیز بناتے ہیں جس کی جبلّت سے زندگی کی مختلف جہتوں میں سے کوئی ایک جہت مانوس یا ہم آہنگ Compatable ہے جس کی وجہ سے حیوانی زندگی پانی میں نمودار ہوئی۔ ہم اس لیے اس زندگی کو بآسانی پہچانتے ہیں کہ زندگی اور ہمارے ذہن و دماغ ایک ہی مشترک خلوی منبع cellular origin سے ابھری ہیں اور یہ فطری اور جبلّی طور پر آپس میں ہم آہنگ ہیں۔ اسی طرح جب تخلیقی جبلّت مختلف ہوگی تو کسی غیر عنصر یا توانائی وحرارت سے متعلّق زندگی کا ادراک جبلّی ہم آہنگی کے فقدان کی وجہ سے ہمارے ذہن اور حواس سے ماوراء ہوگا اور وہ ہمارے لیے معدوم اور “بے وجود ” ہی رہے گی۔ اس کا منطقی اور اصولی نتیجہ یہ نکلتا ہے کہ ہر نامعلوم پیرائے کی زندگی ہمارے لیے طبعی طور پر معدوم رہے گی۔
شعورکی قسمیں : Forms of Conciousness
اسی کرۂ ارض پر خلیات پر مبنی حیات جانور، پرند، حشرات الارض، درختوں اور پھولوں کی شکل میں بھی موجود ہے جو شعور کے حامل ہیں اور جوڑے pairs بھی رکھتے ہیں، گویا خلوی حیات کے کئی متوازی نظام ہمارے سامنے رواں دواں ہیں مگر اس کے باوجود ابھی انسان ان کے شعور اور آپس کے روابط کی حقیقت نہیں جان پایا جس سے انسان کی کم علمی بھی عیاں ہے۔ ثابت یہی ہوتا ہے کہ جب خلوی حیات اور اس سے منسلک شعور کی لا تعداد قسمیں ہمارے سامنے ہیں تو غیر خلوی حیات اور اس سے منسلک شعور اور وجود بعید از قیاس کیسے ہو سکتے ہیں۔ دیکھنا یہ ہے انسان کیوں کسی اجنبی پیرائے کی حیات کی تصدیق نہیں کر پاتا؟
وجود کا دائمی ذہنی ادراک: Constant Mental Perception of Existense
اگر زندگی کسی توانائی مثلاً فوٹون Photon سے آشکارا یا نمودار ہو تو کیا ہم یہ جان سکتے ہیں کہ:
اس کے شعور کے پیرامیٹر کیا ہوں گے؟
اس کے حواس کس طرز کے ہوں گے؟
اس کی قوتوں کے پیرائے کیا ہوں گے؟
اُس طرزِحیات کے ارتقاء کے مراحل کیسے ہوں گے اور اس کی عقل اگر ہوئی تواس کی ماہیّت کیا ہوگی؟
یقینا ہم یہ نہیں جان سکتے۔ اس کی وجہ یہ ہے کہ وجود کے حوالے سے ہمارے تصوّر اور تخیّل کے پیرائے ہماری اساس یعنی خلوی حیات cellular life سے نتھی یا منسلک ہیں، ہمارے ذہن میں وجود کا متعیّن ادراک فطری طور پر طبعی ہے۔ ہم کبھی بھی کسی اجنبی وجودیت یا اجنبی زندگی کے حقیقی پیرائے Alien Life Parameters کو اپنے تخیّل کے فطری خلوی پیرائے Cellular Thought Parameters Natural میں رہتے ہوئے نہیں سمجھ سکتے، کیونکہ یہ آپس میں مانوس اور ہم آہنگ compatible نہیں ہیں۔ اسی اساسی خلوی جبلّت کے پرتو ہمارے ذہن میں وجودیت ایک خاص طبعی پیرائے میں اس سختی سے ثبت ہے کہ یہ ادراک perception اب ایک جنّیاتی ورثے Genetic Heritage کی طرح ہر خاص و عام کا مستقل ذہنی وصف بن چکا ہے۔ تمام انسان بشمول اسکالر اور سائنسداں اپنے اطراف کے پُراثر طبعی ماحول کے پیدائشی اور مستقل اسیر ہوتے ہیں اور وجود اور عمل سے منسلک خیالات اور احساسات بھی خلوی شعور کے زیر اثر ایک خاص طبعی تاثر کے آفاقی دائرے میں گردش کرتے ہیں۔ اسی لیے ہمارے لیے کسی اجنبی پیرائے میں زندگی کا وجود ذہناً ناقابل قبول ہو جاتا ہے۔ اپنے شعور اور عقل کے با وصف ہم یہ نتیجہ تو اخذ کرسکتے ہیں کہ زندگی مختلف نہج Dimensions میں ظاہر ہوسکتی ہے یا ہوئی ہے لیکن جبلّی ہم آہنگی کے فقدان کی وجہ سے کیونکہ ہم اپنے تجربات، عقل اور علم کی روشنی میں کسی غیر خلوی حیات کی نمو پذیری کی تصدیق نہیں کر پاتے، اسی لیے ہم اس کو اپنی عقل کے پرتو مسترد کرتے رہے ہیں۔
خلوی شعور کے حوالے سے یہ واضح رہے کہ آگ سے ابھرنے والی زندگی اور اس کے شعوری پیرائے آتشی ہی ہوں گے، اسی طرح برقی جبلّت سے آشکارا یا نموپذیر زندگی کا شعور بھی برقی شعور ہی کہلائےگا کیونکہ اس کی اساس برقی ہوگی جبکہ روشنی کے پیرامیٹر کی زندگی کا شعور شُعاعی ہوگا۔ ایسی کسی حیات یا وجود کی طبعی یا سائنسی تصدیق فی الوقت ممکن نہیں بلکہ ان کی قبولیت ایمانیات اور عقائد کے زیر اثر ہی ہو سکتی ہے۔
وجودیت کے پیرائے : Parameters of Existence
اس بحث سے صرف یہ اخذ کرنا تھا کہ ہم جسے وجود کہتے ہیں، وہ ایک مخصوص احساس یا تاثر ہے جو ہمیں کسی ایسی ہستی یا چیز کا ادراک دیتا ہے جس کا تعلّق کسی یکساں، مختلف یا منفردحیات سے ہوسکتا ہے۔ یہ بھی واضح ہوا کہ کائنات میں موجود مختلف عناصر اور توانائیوں میں حیات کے ابھرنے کے مواقع منطقی بنیاد پر دور از کار نہیں۔ گویا وجود مختلف دائروں میں مختلف جہتوں میں جلوہ گر ہو سکتا ہے۔ اس طرح وجود کے ایک دائرے میں رہائش پذیر حیات دوسرے دائرے کی حیات سے جدا خصوصیت کی حامل ہوگی۔ ان کا آپس میں ربط ان کے بنیادی اجزاء کی باہمی ہم آہنگی پر منحصر ہوگا۔
ہم نے ابھی یہ سمجھا کہ موجود ہونے کے بہت سے پیرائے یا رنگ ہو سکتے ہیں اور یہ مختلف دائروں میں عیاں ہو سکتے ہیں۔ کائنات اور خود انسانی تمدّن میں جاری نظم ایک آفاقی حقیقت ہے، اس کے بموجب یہ قیاس کرنا منطقی ہوگا کہ وجود یا موجود ہونے کے کائناتی نظام پر حاوی کوئی نظام ہوسکتا ہے جو وجودیت کو مختلف پیرائے اور رنگ دینے کی صلاحیّت رکھتا ہو ورنہ مختلف طبعئی حیات کا ہونا غیر حقیقی ہو جائے گا۔ اب اگر ایسا ہے تو یقیناً وہ حیات یانظم یا قوّت، جس نے وجود کے دائرے تخلیق کیے، وہ یقیناً تمام موجود کائناتی حیات سے انتہائی جدا اور برتر ہوگی۔ اسی نے انسان کو ایک ذہنی قید خانے محصور کر رکھا ہے۔
جب ہم ایک وائرلیس ریموٹ کے ذریعے بہت دور سے کسی مشین کو کنٹرول کرتے ہیں تو بظاہر کوئی واسطہ نظر نہیں آتا لیکن درحقیقت وہ مشین ایک نہ نظر آنے والے نظام سے منسلک ہوتی ہے۔ ایک لا علم کے لیے یہ ایک عجوبہ یا Baffle ہوگا جبکہ جاننے والوں کے لیے یہ ایک مربوط نظام ہے۔ بالکل اسی طرح انسان اطراف میں مخفی نظام ہائے کائنات کی ہیئت سمجھنے میں مشغول تو ہے لیکن مکمّل نظم System کو ابھی تک سمجھنے سے قاصر اور حقیقی کائناتی نظام سے بہت حد تک لاعلم ایک مخلوق ہے۔ مختصراً، اگر کائنات ایک تخلیق ہے تو اس میں موجود زندگی بھی ایک تخلیق ہی ہے اور انسان کے شعور کے بموجب وجودیت بھی ایک غیرمرئی مخلوق ہوئی الّا یہ کہ جدید علوم عملی طور پر Practically یہ ثابت کردیں کہ عدم سے وجود یا نیست سے ہست things from nothing خود بخود کیسے ظاہر ہوتا ہے۔ مزید یہ کہ اچانک کائناتی تخلیق spontaneous creation میں زندگی اور شعور کا عیاں ہونا بھی ایک ناقابل تشریح عجوبہ ہی ہے۔
وجود خدا کی حقیقت: Reality of Existence of God
وجود ایک ذہنی تاثر ہے جس کی وجہ سے ہم موجود ہونے کو ہی وجود گردانتے ہیں کیونکہ ہماری نموپذیری شعور کے احساس وجود میں ہوتی ہے۔ خدا ایک ایسی ہستی ہے جس نے یہ نظام تخلیق کردیا جس میں موجود ہونے کا شعور ہی زندگی کہلایا۔ ہمارا خلوی شعور وجود کا ایک فطری طبعی تاثر ہمارے ذہن میں تخلیق کیے رہتا ہے۔ انسان خدا کو سمجھنے کی کوشش وجود اور عدم وجود یا حاضر اور غائب کے اُنھی طبعی پیرایوں میں کرتا ہے جو خلوی شعور کے بموجب مستقل فطری تاثر بن چکے ہیں۔ یہ سوال کہ خدا کو کس نے بنایا؟ تجسّس میں اسی فطری تاثر سے اٹھتا ہے اور انسان خدا کو بھی اپنی طرح کی زندگی اور وجود کا خوگر سمجھتے ہوئے جاننے کی کوشش کرتا ہے جو کہ خداکے حوالے سے ایک غیر حقیقی تصوّر illusion ہے۔ خدا یقیناً ایک زندہ ہستی ہے لیکن اس ہستی کا پیرایہ کیا ہوگا اُس کو انسان اپنی عقل کی خلوی ساخت Cellular Based Wisdom کی وجہ سے سمجھنے کا مکلّف ہی نہیں ہے۔
دیکھیے بجلی یا برق Electric کی ساخت کی بھی ایک جبلّت ہے جس کو قابو کر کے انسان نے کمپیوٹر اور روبوٹ بنا کر ان کو مصنوعی زندگی اور مصنوعی عقل دی۔ جس طرح انسان کے تخلیق کردہ الیکٹرانک ماحول میں مقیّد کوئی سپر روبوٹ بھی اپنی برقی Electronic جبلّت کی محدودیت اور نامانوس جبلّی ساخت کی وجہ سے خلوی زندگی Cellular life کے پیرائے نہیں سمجھ سکتا بلکہ اس کی رمق تک بھی نہیں پہنچ سکتا، اسی طرح انسان خدا کو طبعی اور خلوی پیرایوں میں مقیّد رہ کرشاید کبھی نہ سمجھ پائے۔ ریڈار ایک مصنوعی “حواس” کا خوگر نظام ہے کہ اس سے خارج ہونے والے سگنل کسی جسم سے ٹکرا کر اس کا الیکٹرونک تاثر لے کر واپس آتے ہیں اور اس کی موجودگی کو ظاہر کرتے ہیں لیکن اسٹیلتھ تکنیک Stealth Technology اس کو غیر مئوثر کردیتی ہے۔ یعنی اگر چار جہاز اُڑتے آرہے ہیں اور ان میں ایک اسٹیلتھ ساخت کا ہے تو ریڈار صرف تین جہاز دکھائے گا۔ اسٹیلتھ نظام سے آراستہ کوئی جسم اس کو نظر نہیں آئے گا۔ گویا جہاز، ایک ٹھوس جسم کھلی فضا میں موجود ہوتا ہے لیکن ایک مقیّد ماحول یعنی ریڈار کے کنٹرول روم، یعنی کسی خاص پیرائے میں موجود سے معدوم ہو جاتا ہے۔ یہی صورتحال انسان کے حواس اور تخیّلات کے بموجب خدا کے وجود کی ہے کہ انسان سب کچھ دیکھ سکتا لیکن خدا کو نہیں کیونکہ کائنات کا ماحول اسی ریڈار کے کنٹرول روم کی طرح ہے جس میں انسان اپنے حواس کے طابع ہر چیز کا شعور حاصل کرسکتا ہے جبکہ خدا کسی نامعلوم اسٹیلتھ جیسے پیرائے میں رہ کر ہر چیز پر حاوی ہے۔ اگر خدا اس طبعی ماحول سے کسی ایسے پیرائے میں بھی منسلک ہوتا جس کا فی الوقت انسان کو علم ہے توانسان اب تک خدا کے وجود کا پیرایہ جاننے کی طرف پیش قدمی کر چکا ہوتا۔ در حقیقت میٹافزکس جوں جوں فزکس میں ضم ہوتی رہے گی، خدا کو سائنسی طور پر قبول کرنے کے مواقع اتنے ہی بڑھیں گے۔
منکرین کے مخمصے : Confusion of Nonbeleivers
الحاد دراصل کائنات اور وجود کی حقیقت کی تلاش میں سرگرداں سوچتے ہوئے انسانی ذہن کا مخمصہ ہے اور بس! کیونکہ کوئی بھی بڑے سے بڑا منکرخدا خواہ وہ کوئی عظیم اسکالر یاسائنسدان ہی کیوں نہ ہو، آج بھی کائنات اور زندگی کے عجوبے کی تشریح خدا کو خارج کر کے نہیں کرسکا۔ ان کے پاس نہ زندگی اور شعور کی سائنسی وضاحت ہے اور نہ ہی انسانی جذبات و خیالات کے اجراء کی توضیح ہے۔ علم، عقل اور منطق کے سہارے سائنسی نظریات کا دفاع کرتے ہوئے جہاں بےبس ہوجاتے ہیں تو کچھ اس طرح کہہ دیتے ہیں کہ یہ ایک حیران کن مسٹری ہے جس کا پتہ کبھی چل جائے گا۔ سائنس کی محدودیت اس بات سے ہی عیاں ہے کہ یہ صرف ان سوالات کا جواب دیتی ہے جو کیا اور کیسے سے شروع ہوتے ہیں اور بہت سے انتہائی ضروری ‘کیوں’ سے شروع ہونے والے سوالات کا جواب نہیں دے سکتی بلکہ لفظ کیوں اس کی لغت سے ہی خارج ہے۔
سائنس آج بھی جن سوالوں کے جواب نہیں دے سکتی ان میں سے چند یہ ہیں۔
کائنات عدم سے خود بخود کیسے ظاہر ہوئی؟ کائنات کیوں بنی؟
بگ بینگ سے پہلے کیا تھا؟ کائنات میں ہر جگہ ایک نظم کیسے ہے؟ اور کیوں ہے؟
زمین کے ہر گوشے میں پیدا ہونے والی زندگی اپنے گروپ میں یکساں اور آفاقی جبلّت کیوں رکھتی ہے؟
بےپایاں علوم بھی کیا بگ بینگ سے قبل موجود تھے؟ ان کا منبع کیا ہے؟
زندگی کیا ہے اور کیوں ہے؟ شعور کیا ہے اور کیوں ہے؟
اچھے برے خیالات کا اجراء کہاں سے اور کیوں ہوتا ہے؟ وغیرہ وغیرہ
جدید علوم خدا کا متبادل پیش کرنے میں کھلے ناکام ہیں اسی لیے ہراسکالر، فلاسفر اور ہر دہریہ کسی بھی مباحثے میں مذکورہ بالا سوالات کے جوابات سے اپنی لاعلمی کا اعتراف کرتا ملے گا، جس کا مطلب یہ ہے کہ سائنس اپنی محدودیت کی وجہ سے انسان کی صرف خادم بن سکتی ہے رہنمانہیں۔
ان گزارشات سے یہ امید کی جاسکتی ہے کہ خدا کے ناقد عقلی، منطقی اور سائنسی طور پر کسی حد تک یہ جان چکے ہوں گے کہ موجودہ فزیکل پیرایوں میں یہ سوال کہ خدا کو کس نے بنایا، غیر متعلّق Irrelevant ہو جاتا ہے۔ اس کے بجائے جو سوالات ابھرتے ہیں وہ یہ ہیں کہ:
انسان کیوں ہے؟ کیسے بنا ؟ کس نے بنایا؟
ذرا سوچیے!
(خدائی سرگوشیاں سے ماخوذ)